गाँधीजी ने सरदार पटेल को प्रधानमंत्री क्यों नहीं बनने दिया ?
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| सरदार पटेल और गांधीजी ऐ आई से तस्वीर |
1946 में भारत में केबिनेट मिशन योजना के अंतर्गत अंतरिम सरकार का गठन होना था, और ये बात साफ़ थी की प्रांतीय समितिओमे से जिसके नाम पर सबसे ज्यादा सहमति होगी वही प्रधानमंत्री बनेगा। कुल 15 प्रांतीय समिति में से 12 प्रांतीय समितिओ ने सरदार पटेल का नाम भेजा और बाकि 3 समितिओ ने इसमें भाग ही नहीं लिया था। इस तरह सरदार पटेल का प्रधानमंत्री बनना तय था।
गाँधीजी ने किया नेहरू का समर्थन :
अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री के चयन के लिए कोंग्रेस की वर्किंग कमिटी और प्रमुख नेताओ की एक मीटिंग बुलाई जाती है, जिसमे महात्मा गाँधी भी शामिल थे। इस मीटिंग में सरदार को प्रांतीय समितिओ की और से पूर्ण बहुमति मिलती है, लेकिन नेहरू पीछे हटने के लिए तैयार नहीं होते। बैठक में शामिल गाँधी जी की इच्छा भी नेहरू को प्रधानमंत्री बनाने की थी, और वो सरदार पटेल को अपना नाम वापस लेने के लिए कहते है। और यहाँ सरदार अपना बड़ा दिल दिखाकर प्रधानमंत्री पद से अपना नाम वापस लेने के लिए तैयार हो जाते है।
गांधीजी क्यों चाहते थे की नेहरु प्रधानमंत्री बने :
गांधीजी नेहरू को हमेशा से अपना उत्तराधिकारी मानते आये थे, साल 1942 में गांधीजी और नेहरू के बीच के मतभेद चरम पर थे। उस वक्त भी गांधीजी ने अपने बयान में कहा था की "नेहरू ही मेरा उत्तराधिकारी है,आज भले ही वो मेरे से वैचारिक मतभेद रखता है लेकिन आगे जाकर वो भी मेरी तरह ही काम करेगा और मेरे बाद इस देश को दिशा दिखाएगा।
गांधीजी का मानना था की अंग्रेज़ सरकार से सत्ता हस्तांतरण और विदेशनिति के मामले में नेहरू सरदार पटेल से अच्छा काम कर सकते है। नेहरू केम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पढ़े हुए और धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद के समर्थक थे साथ ही वे एक प्रबल वक्ता और कोंग्रेस के करिश्माई चेहरा थे जिसे लोग काफी पसंद करते थे।
जहा गांधीजी ग्रामीण भारत पर जोर देते थे वही नेहरू औद्योगिक विकास और विज्ञानं पर जोर देते थे,जिससे विश्व के सामने भारत मजबूती से खड़ा हो सके । युवा वर्ग और शहरो में नेहरू को अद्भुत समर्थन प्राप्त था और वो युवाओ के एक लोकप्रिय चेहरा थे। इस वजह से गाँधीजी को लगता था की नेहरू लोगो से ज्यादा भावनात्मक तरीके से जुड़ सकते है।
गांधीजी को इस बात से भी डर था की अगर पटेल को प्रधान मंत्री बनाया तो नेहरू और पटेल के बीच में आने वाले सालो में टकराव हो सकता है, और नेहरू पटेल के निचे काम करने के लिए तैयार नहीं होगा। ऐसी स्थिति में गांधीजी ने नेहरू को ही सही समजा प्रधानमंत्री के लिए, ताकि भारत को आने वाले समय में एक स्थिर और मजबूत सरकार मिल सके।
पटेल ने दिया बलिदान :
इस तरह भारत के लोखंडी पुरुष कहे जाने वाले सरदार ने बिना कोई विरोध किए प्रधानमंत्री पद का त्याग कर दिया, और देश को आगे बढ़ाने के लिए बिना किसी राग-द्वेष के नेहरू के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चलने लगे।
गांधीजी नेहरू की महत्वकांशा से वाक़िफ़ थे
, आने वाले सालो में सत्ता के लिए कोई टकराव न हो इसलिए नेहरू को चुना गया।

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