गोलकोंडा की खदान से इंग्लैंड की महारानी के ताज तक, कोहिनूर का सफर

ब्रिटेन की महारानी का ताज और उसमे लगा हुआ कोहिनूर 
                                                          
           भारत की प्रसिद्ध गोलकुंडा की खदानों से निकलने वाला दुनिया का सबसे बेसकीमती हिरा "कोह-ऐ-नूर "आज इंग्लैंड में टावर ऑफ़ लंदन के जेवेल हाउस में सुरक्षित है। सल्तनत और सरहदे बदलता हुआ कोहिनूर आज ब्रिटेन के शाही परिवार की संपत्ति है और ब्रिटेन की महारानी के ताज पर शुशोभित है। 

कहा से और कब मिला कोहिनूर 

           वर्तमान भारत के तेलंगाना राज्य में स्थित गोलकुंडा की खदानों से 13 वी सताब्दी के आस-पास इसे  निकला गया था, गोलकुंडा की इस खदानों ने विश्व को कोहिनूर के अलावा भी कई और बेशकीमती हिरे दिए, जिनमे द ग्रेट मुग़ल डायमंड और होप डायमंड शामिल है। 

किन- किन शाशको के पास गया कोहिनूर 

           प्रमाणित इतिहास के अनुसार सबसे पहले कोहिनूर दक्षिण भारतीय राजवंश काकतीय वंश के पास था और तब इसका वजन 793 कैरेट था, काकतीय वंश ने इस हिरे को अपनी कुलदेवी भद्रकाली की मूर्ति में आँख में जड़वाया था। इसके बाद 14 वी शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी ने इस हिरे को हासिल किया,अलाउद्दीन ने अपने शाशन काल में दक्षिण भारत में कई हमले किऐ थे। इन हमलो में उसने दक्षिण भारत के मंदिरो को भी लुटा और उसे नष्ट किया, इन चलाई हुई लूटो में उसे कोहिनूर भी हासिल हुआ था। खिलजी वंश के पतन के बाद ये हिरा क्रमश तुगलक, सैयद और लोदी वंश के सुल्तानों के पास रहा। 

           पानीपत की लड़ाई में बाबर ने इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली को अपने कब्जे में ले लिया और कोहिनूर मुग़लशाशन के अधीन आ गया, तुजुक ऐ बाबरी में भी ऐसा उल्लेख है की उसे कोहिनूर हिरा मिला और उसने उसे अपने बेटे हुमायु को तोहफे में दिया। हुमायु के बाद कोहिनूर हिरा इसके बाद आने वाले मुग़ल उत्तराधिकारिओ के पास रहा।

           मुगल सम्राट मुहमद शाह के शाशन में कमजोर हुई मुग़ल सल्तनत को देखकर ईरान के शाशक नादिर शाह ने दिल्ही पर हमला कर दिया और बड़े पैमाने पर खजाने की लूट चलाई। इस हमले से कोहिनूर नादिर शाह के पास आगया और वह उसे अपने साथ ईरान ले गया। नादिर शाह ने इसे देख कर उसे कोह ऐ नूर कहा  जिसका अर्थ होता है रौशनी का पहाड़। इस तरह इस बेशकीमती हिरे को अपना नाम मिला और यह आज भी अपने इसी नाम कोह ऐ नूर से जाना जाता है। 

           नादिर शाह की मृत्यु के बाद उसका सेनापति अहमद शाह अब्दाली, नादिर शाह का खजाना लूट कर कोहिनूर को अपने साथ अफ़ग़ानिस्तान ले गया और वहां उसने दुर्रानी साम्राज्य की स्थापना की। इस तरह कोहिनूर दुर्रानी साम्राज्य का हिस्सा बन गया और अगले कुछ दशक इसी साम्राज्य के पास रहा। अंत में यह हिरा इस वंश के सुजा शाह दुर्रानी के पास आया, सुजा शाह दुर्रानी सत्ता से बे दखल हो जाने के बाद वह हिरा लेकर लाहौर आया और महाराजा रणजीतसिंह के दरबार में शरण ली। रणजीतसिंह ने उसकी रक्षा का जिम्मा लेते हुए  उससे वह हिरा मांग लिया और इसतरह कोहिनूर फिरसे भारत आ गया और शिख साम्राज्य का हिस्सा बना। 

           महाराजा रणजीतसिंह ने कोहिनूर को अपने सिहासन पर लगाया और अपने तख़्त की शोभा बढ़ाई, रणजीत सिंह ने अपने आखरी दिनों में इस हिरे को पूरी के जगन्नाथ मंदिर को दान में देने का मन बनाया लेकिन ऐसा नहीं हो पाया और उनकी मृत्यु हो गई। रणजीतसिंह की मृत्यु के बाद राज्य में भारी उथल -पुथल शुरू हो गई और 1849 में ब्रिटश ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसका लाभ उठाकर पंजाब पर अपना कब्ज़ा कर लिया और 10 वर्षीय महाराजा दिलीपसिंह से लाहौर संधि पर हस्ताक्षर कराकर जबरन  कोहिनूर को भी अपने कब्जे में ले लिया।

            ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसे साल 1950 में भारी सुरक्षा के साथ जहाज में लंदन भेजा और इसे तबकी महारानी विक्टोरिया को भेट कर दिया, तब से आज तक कोहिनूर ब्रिटेन के शाही परिवार की संपत्ति है। 

पुरुषो के लिए है श्रापित 

           इतिहास कारो का मानना है की कोहिनूर पुरुष शाशको के लिए एक श्रापित हिरा है, जिसभी राजा ने इसे अपने पास रखा उनका अंत दर्दनाक हुआ और उनके साम्राज्य का भी पतन हो गया। इसी वजह से उसे ब्रिटेन की रानी के ताज में लगाया गया है, यह महिलाओ के लिए भाग्यशाली माना जाता है। 

क्या भारत लाया जा सकता है कोहिनूर 

           हर कुछ सालो में ये बात उठती रही है की कोहीनूर भारत का है और उसे वापस भारत लाया जाना चाहिए , लेकिन इसमें भी कई दुविधाऐ है। भारत के अलावा ईरान, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान भी इसके लिए अपना दावा पेश कर चुके है, और इनका मानना है की कोहिनूर हमें मिलना चाहिए। 

           कोहिनूर को लेकर ब्रिटेन का रुख साफ है, उनका कहना है की कोहिनूर ब्रिटेन की तब की महारानी विक्टोरिया को भेट के रूप में मिला था, इसे किसे से बलपूर्वक या लूट कर नहीं लिया गया है। और इस तरह वह उसे ब्रिटिश शाही परिवार की संपत्ति मानते है। 

           आज वर्त्तमान में कोहिनूर 793 कैरेट से घटकर 105.6 कैरेट का ही बचा है, इसे और भी ज्यादा खूबसूरत और चमकीला बनाने के लिए उसे मुग़ल और ब्रिटिश शाही परिवार के द्वारा उसकी कटाई और पॉलिशिंग कराइ गई, इस वजह से वह अपने मूल आकर से आज बहुत छोटा रह गया है। 





         
 




           

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